मंदिरो में प्रसाद के रूप में दी गर्इ तुलसी की 4-5 पतियों को मुँह में रखकर खाने का विधान है। भगवती वृन्दावनी जो भगवान विष्णु को प्रिय थी उनकी स्वरूप मान्य यह पौधा औषघीय गुणों से भरपूर है। इसकी कोमल पत्तिया खाने से बुखार, जुकाम, श्वास की बीमारियां, पथरी, ह्रदय की विÑतियों से बचाव होता है। अत: हर घर में यह पौधा अनिवार्य रूप से होना चाहिए।
विशेष प्रयोग :
- ज्वर (बुखार) में स्वेड (पसीना) लाने के लिये 7 तुलसी के पते, 3 काली मिर्च पीस कर, 5-6 कटोरी पानी डालकर उसे एक कटोरी रहने तक गरम करें। यह गरम सा पानी सोते समय पीने से सर्दी जुकाम सहित ज्वर में बहुत लाभ होता है।
- उदरशूल (पेट का दर्द) में तुलसी पत्र का रस एवं नींबू का रस पीने से बहुत लाभ होता है।
- हनुग्रह (मुख भाग जकड जाना) में तुलसी पत्र स्वरस की नस्य लेने (नाक में डालने) से शीघ्र आराम मिलता है।
- मलेरिया, बुखार और सर्दी से आने वाले तेज बुखारों में तथा पसली के दर्द में तुलसी के दस पत्रों का स्वरस शहद में मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से बहुत लाभ होता है
उलिटयां होने पर तुलसी को पोदीना एवं सौंफ के अर्क में मिलाकर पिलाने से उलिटयां बंद हो जाती है।