Slow down, take some time off and watch the wonders of nature slowly unfold.
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Gheru painting
Stay with us
If you are looking for a quiet, peaceful, naturally beautiful place to spend some time at, if you want to get away from the maddening crowd and slow down and refresh, rediscover yourself, then Tapovan Ashram is the right place for you.
Since the ashram is intended to provide a conducive setting for peaceful contemplation and not be an alternative for a hotel or tourist resort, clean but basic accomodation has been made available to visitors. The regular inhabitants of the ashram try and live in as eco-friendly a way as possible. There are no hi-tech electronic devices like TV, broadband internet, AC etc. The rooms have simple beds, light and fan, some storage space and toilet. One or two electric sockets with 220 V,50 Hz electric supply are provided in each space. Electric supply though may be erratic.
There are two types of accomodation available –
Dormitory beds with shared bathrooms (separate for gents and ladies) – INR 400 per person per night
Private room (2 beds) with attached bathroom – INR 1000 per night. Extra bed INR 500 per night.
To make a confirmed reservation you should contact us with your planned dates of stay and then we will instruct you to pay a non-refundable advance amount into any branch of our bank in the city where you are located in India at the time of the reservation.
If you do not wish to make a reservation, then you may contact us just before you plan to actually stay at the campus and we can let you know if accomodation is available at that time.
Swimming pool can be filled up on request (subject to water availability) for a fee, please contact us. The water collected in the pool is later used to irrigate our orchard, so we don’t add any chemicals in the water and it doesn’t get wasted.
To keep costs low, a common kitchen has been provided with basic resources needed for cooking. The visitors can cook their own food and clean up after the meal and will be charged Rs.300 per day towards food and gas expenses. If you wish to have your food cooked and served by a cook then there will be a charge of Rs.500 per person per day for 3 simple vegetarian meals.
For large groups of 10 people and more staying for more than 2 days please contact us for customized rates.
The ashram follows a strict code of conduct and any violations are firmly dealt with.
Banana plants planted near kitchen
Pics from Jeevan Vidya workshop with Vinish Gupta, 14-20 Dec 2013
गुलाब Rosa damacena, Rosa Indica
सुन्दरता का यह पौधा प्राय: सभी घरों में गमलों अथवा जमीन पर लगाया हुआ दिखार्इ दिया जा सकता है। इसकी अनेको रंग बिरंगी देसी व कलमी किस्में सभी पौधशालाओं मेें बहुलता से उपलब्ध होती है। हम इसको केवल औषध के रूप में उपयुक्ता के आधार पर वर्णित कर रहे है। ये मुख्यतया चैतर्इ गुलाब जो साल भर में केवल चैत्र मास ही में फूल देते है; देसी गुलाबी गुलाब व साल भर बहुलता से फूल देने वाला गंगानगरी लाल गुलाब है।
सबसे उपयुक्त चेतर्इ गुलाब राजस्थान में बहुत थोडे क्षेत्र में हल्दीघाटी (खमनोर) में उगाया जाता है जिसका श्रीनाथ मंदिर नाथद्वारा में चैत्र मास में पहला भोग लगाया जाता है व इन फूलो से विश्वप्रसिद्ध गुलाब का तेल व इत्र, गुलाब जल, शरबत व गुलकन्द बनता है। उत्तर प्रदेश के कन्नोज, अलीगढ, गाजीपुर, बलिया आदि क्षेत्रों में व्यवसायिक स्तर पर खेती की जाती है।
औषधि के रूप में गुलाब जल को काजल, अंजन और आँखो के घावों आदि में उपयोग किया जाता है। तेल को अनेक अप्रिय स्वाद और गंधवाली वस्तुओं में मिलाकर प्रिय बनाया जाता है। इत्र को सुगंध उधोग में बहुतायत से उपयोग किया जाता है। गुलाब का शरबत गर्मियो में स्फूर्तिदायक पेय के रूप में व पंखुडियाँ आदि गुलकन्द व मिठाइयों में काम आती है।
मीठा नीम (कडी पत्ता) – Meetha Neem (Muraya Koinigi)
बहु उपयोगी मीठे नीम का छोटा वृक्ष (झाड़) बडे गमले में आसानी से उगाया जा सकता है। कढ़ी, दाल, सब्जी, पुलाव, नमकीन आदि भोज्य पदार्थो में इसके ताजे हरे पत्ते छोंक देते समय तप्त घी या तेल में डाल कर भून कर मिला लें तो सब्जी में सुगंध आने लगती है व आहार में अत्यधिक बीटा कैरोटीन, प्रोटीन, लोह, फासफोरस, विटामिन ‘सी आदि पोषक तत्व सहज ही प्राप्त हो जाते है।
प्रयोग :
- मूँग की दाल में मीठे नीम के पत्तों का छोंक लगाकर सेवन करने से अपानवायू दूर होती है, भूख खुलकर लगती है तथा भोजन शीघ्र पचता है।
- पेशाब में जलन होने पर इसके पत्तों व डन्डी को उबालकर व ठंडा करके पिलाने से आराम मिलता है। इसमें छोटी इलायची के दानों का चूर्ण मिलाना ज्यादा हितकारी है। इसे पीने से मूत्रावरोध दूर होकर मूत्र साफ आता है।
- वंशानुकूलजनित मधुमेह में प्रतिदिन दस पत्तियों को सुबह-सुबह चबाकर खाने से तीन महिने में ही लाभ मिल जाता है। मोटापाजनित मधुमेह भी ठीक होता है।
- इसकी पत्तियों को पीस कर छाछ या लस्सी के साथ लेने से बाल जड़ो से मजबूत व चमकीले बनकर स्वस्थ हो जाते हैं तथा केशो का झड़ना या गिरना रूक जाता है। इसकी पत्तियों को नारियल के तेल में जलाकर काली पडे तब तक उबालकर उस तेल को बालों में लगाने से बालों को ताकत मिलती है, बाल बढते हैं तथा बालों की चमक बरकरार रहती है।
मीठे नीम की पत्तियों में हर्बल टानिक के गुण पाये जाते हैं, ये शरीर की पाचन क्रिया को मजबूती देती है तथा शरीर को स्वस्थ रखने में सहायता प्रदान करती है अत: इसको हर घर में लगाना उपयुक्त है।
अर्जुन Arjun (Terminalia Arjuna)
यह अमरूद के पत्तों जैसे पत्तों वाला वृक्ष है जिसकी छाल ह्रदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त पित्त आदि के लिये महाऔषधि के रूप में काम में ली जाती है। इसकी छाल में बीटा साइटोस्टेराल, अर्जुनिक अम्ल (जो ग्लूकोज के साथ एक ग्लूकोसाइड बनाता है), फ्रीडेलीन, टैनिन्स तथा अनेक उपयोगी लवण आदि होते हैं जो ह्रदय की मांसपेशियों में सूक्ष्म स्तर पर कार्य कर पाते है।
अर्जुन छाल के गुणों का विवेचन अनेको निघण्टुओं, में आचार्य वागभट्ट, डॉ. देसार्इ, डॉ. नादकर्णी, डॉ. के.सी. बोस एवं वैल्थ आफ इणिडया के वैज्ञानिको ने एक स्वर से की है। इससे रक्तवाही नलिकाओं का संकुचन होता है। सूक्ष्म कोशिकाओं व छोटी धमनियों पर इसके प्रभाव से रक्ताभिषरण क्रिया बढती है, ह्रदय को ठीक पोषण मिलता है व धडकन नियमित-व्यवसिथत होने लगती है। अर्जुन ह्रदय के विराम काल को बढाते हुए उसे बल भी पहुँचाता है तथा शरीर में संचित नहीं होता। मूत्र की मात्रा बढाकर यह मूत्र द्वारा ही बाहर निकल जाता है। किसी भी रोग की जटिल परिणति “हार्ट फेल्योर” में इसका यह कार्य एंटीकोएगुलैन्ट के रूप में अति लाभकारी सिद्ध होता है।
प्रयोग :
- ह्रदय में शिथिलता आने पर (Chronic Congestive Failure) में अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम दूध, गुड़ या घी के साथ ओटा कर दिन में दो या तीन बार पिलाते है।
- पेशाब की जलन, श्वेत प्रदर तथा चर्म रोगों में चूर्ण रूप में लिये जाने पर लाभकारी है।
- हड्डी के टूटने पर इसकी छाल का स्वरस दूध के साथ देने से आराम मिलता है।
- विषैले जीवों के दंश स्थान पर इसकी छाल पीस कर लेप करने से पीडा शान्त होती है।
- अर्जुन के छाल के चूर्ण में अडूसे के पत्तों का स्वरस की सात भावना देकर शहद के साथ चाटने से टी.बी. में उठने वाली खूनी खांसी में लाभ होता है।
सहजना (Moringa Oliefera) Drum Stick
अधिकतम बीटा कैरोटीन वाला यह पौषिटकता में श्रेष्ठ पत्तियों वाला व लम्बी फली देने वाला वृक्ष (जो बडे गमले में भी लगाया जा सकता है) हर घर में प्राथमिकता के आधार पर लगाया जाना चाहिये। उपयोगिता की विसित्रत जानकारी हेतु वैबसार्इट www.plantsforlife.org देखें। विकासशील देशों में malnutrition की समस्या से निपटने के लिये इसकी पत्तियों का उपयोग बहुलता से किया जा रहा है। इसकी फली को सांभर में डाल कर, सब्जी बना कर (व चूस कर) उपयोग में लेना बहुत लाभप्रद है।
कनेर Kaner (Nerium Oleander)
सफेद एवं लाल फूल वाली देसी कनेर ही औषध (विशेषकर विष औषध) के रूप में अधिक उपयोगी होती है। इसके झाड़ को जानवर नहीं खाते है इसलिये सड़क मार्ग पर शोभा हेतु बहुतायत से लगाया जाता है।
उपयोग :
- कनेर के पत्तों को कड़वे तेल में भूनकर शरीर पर मलने से खुजली शान्त हो जाती है।
- कनेर के पत्ते, गंधक, सरसों का तेल, मिêी का तेल इन सबका मरहम बनाकर लगाने से दाद कुछ ही दिनों में साफ हो जाते है।
- सफेद कनेर की पत्तिया छाया में सुखाकर महीन पीस लें। सिर में जिस भाग में दर्द हो उधर के नथूने में, उसमें से दो चावल के बराबर फूँक दे। इस क्रिया से नाक से खूब पानी गिरेगा और ढेर सारी छीकें आकर, आधासीसी में आराम हो जायेगा। माथे में बलगम या पानी रूक जाने से सिरदर्द होता है, उसमें भी इस क्रिया से लाभ होता है।
लाल कनेर के फूल और नाम मात्र की अफीम दोनो को मिलाकर, पानी के साथ पीसकर, गर्म करके मस्तक पर लेप करने से, कुछ ही देर में सिर का भयानक दर्द और सर्दी जुकाम ठीक हो जाते हैं।