यह एक छोटा भूमि पर फैलने वाला पौधा है जो तने की गाँठ को जमीन में दबाकर लगाया व बढाया जा सकता है। पीपल के फल (पीपरी) ह्रदय को शकित देने वाले, दस्त लाने वाले, रक्त साफ करने वाले तथा पित्तविकार का शमन करने वाले होते है। ये जलन, प्यास और विष के प्रभाव को भी नष्ट करते है। पीपली के हरे पक्के फलों को नींबू के रस में डालकर रखने व भोजन के बाद एक या दो फल खाने से उपरोक्त लाभ मिल जाते हैं अर्थात यह उपयोगी औषध है।
इसके अतिरिक्त पीपली के पत्तों को एरंड का तेल लगाकर और गरम करके नाडुवों के ऊपर बांध देने से पेट के कृमि बाहर निकल जाते हैं।
पीपली के तने व छाल को जलाकर उसकी भष्म मूत्रेन्द्रीय के घाव पर भरने से त्वचा स्वच्छ हो जाती है। इसकी भष्म को यदि चौथार्इ ग्राम की मात्रा में शहद में मिलाकर बार-बार चटाया जाय तो अपचन, उल्टी और दाय आदि की शानित होती है।