अर्जुन Arjun (Terminalia Arjuna)

यह अमरूद के पत्तों जैसे पत्तों वाला वृक्ष है जिसकी छाल ह्रदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त पित्त आदि के लिये महाऔषधि के रूप में काम में ली जाती है। इसकी छाल में बीटा साइटोस्टेराल, अर्जुनिक अम्ल (जो ग्लूकोज के साथ एक ग्लूकोसाइड बनाता है), फ्रीडेलीन, टैनिन्स तथा अनेक उपयोगी लवण आदि होते हैं जो ह्रदय की मांसपेशियों में सूक्ष्म स्तर पर कार्य कर पाते है।

अर्जुन छाल के गुणों का विवेचन अनेको निघण्टुओं, में आचार्य वागभट्ट, डॉ. देसार्इ, डॉ. नादकर्णी, डॉ. के.सी. बोस एवं वैल्थ आफ इणिडया के वैज्ञानिको ने एक स्वर से की है। इससे रक्तवाही नलिकाओं का संकुचन होता है। सूक्ष्म कोशिकाओं व छोटी धमनियों पर इसके प्रभाव से रक्ताभिषरण क्रिया बढती है, ह्रदय को ठीक पोषण मिलता है व धडकन नियमित-व्यवसिथत होने लगती है। अर्जुन ह्रदय के विराम काल को बढाते हुए उसे बल भी पहुँचाता है तथा शरीर में संचित नहीं होता। मूत्र की मात्रा बढाकर यह मूत्र द्वारा ही बाहर निकल जाता है। किसी भी रोग की जटिल परिणति “हार्ट फेल्योर” में इसका यह कार्य एंटीकोएगुलैन्ट के रूप में अति लाभकारी सिद्ध होता है।

प्रयोग :

  1. ह्रदय में शिथिलता आने पर (Chronic Congestive Failure) में अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम दूध, गुड़ या घी के साथ ओटा कर दिन में दो या तीन बार पिलाते है।
  2. पेशाब की जलन, श्वेत प्रदर तथा चर्म रोगों में चूर्ण रूप में लिये जाने पर लाभकारी है।
  3. हड्डी के टूटने पर इसकी छाल का स्वरस दूध के साथ देने से आराम मिलता है।
  4. विषैले जीवों के दंश स्थान पर इसकी छाल पीस कर लेप करने से पीडा शान्त होती है।
  5. अर्जुन के छाल के चूर्ण में अडूसे के पत्तों का स्वरस की सात भावना देकर शहद के साथ चाटने से टी.बी. में उठने वाली खूनी खांसी में लाभ होता है।

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