यह एक अत्यन्त उपयोगी बहुवर्षीय मासल पत्रों वाला एक से दो फुट ऊँचा पौधा है जो अपनी जड के पास स्वत: उगे हुए छोटे पौधों को अलग करके बोने से प्रसारित किया जा सकता है। यह मरूस्थली बंजर भूमि में ज्यादा सरलता से लगता है व अति ऊष्ण एवं शुष्क जलवायू को सह सकने की क्षमता रखता है।
गुण धर्म :
- इसके गूदे से यकृत (लिवर) की क्रिया में आशातीत लाभ होता है और खाये अन्न का साम्यीकरण होता है।
- यह विरेचन करता है क्योंकि इसका सीधा प्रभाव बड़ी आंत पर होता है अत: कब्ज आदि में इसका प्रयोग लाभप्रद होता है।
- इसके रस का स्तन शौध, चर्म विकार, अर्श (मस्से) एवं घाव में हल्दी के साथ बाहरी लेप करने पर आराम मिलता है।
- यह बलवर्धक भी है और वायू विकारों में लाभ होता है। इसके लड्डू बनाकर खाने से वाय के रोगों में बहुत लाभ मिलता है।
- उधोगों में आजकल इसको सौन्दर्य प्रसाधन क्रीमों में बहुलता से उपयोग किया जाने लगा है।
घरेलु उपयोग विधि :
एक स्वस्थ पत्ती (2-3 इंच चौड़ी) का 3-4 इंच का टुकड़ा काटकर कांटेदार किनारे काट दें। बीच के गूदे के ऊपर व नीचे छिलके को उतार कर चेहरे व हाथ-पाव पर मलने के काम लें। लिसलिसाये गूदे को सीधा खा लें अथवा मिक्सी मशीन में चलाकर पीस लें। यह सब प्रकार के रोगों के निवारण में सहायक होगा।